Friday 29 June 2012

नंगापन



वह पागल है,
भटकता रहता है
सड़कों पर
गलियों में 
फिरता रहता है
-वह नंगा 

नहीं मालूम उसे
समाज क्या है?
दुनियादारी किसे कहते हैं

नहीं जानता
निजता क्या है
वस्त्र क्या होता है?
तन किस लिए ढका जाता है?

जानता है तो बस
-भूख
पहचानता है तो बस
-रोटी

दुत्कारती है दुनिया 
डरता है वह 
अपने उपर फेंके जाने वाले 
-पानी से
क्यूँकी वह पागल है

पर क्या फर्क है 
उसमें और हममें

हम भी तो हैं
-नंगे 
क्या हमने नहीं उतार फेंके 
-वस्त्र
अपनी मर्यादाओं के
अपने संस्कारों के

अंतर्मन से आती हुई 
चीख-पुकारों को
दफना देते हैं उन
-आवाजों को

तो क्या हम नहीं हैं?
हत्यारे,अपनी
-रूह के

जो कचोटती हैं
धिक्कारती हैं
-हमें
हमारे पापी होने पर

कहती हैं
मिटाने को 
पुती हुई है जो
दिल की दीवारों पर
दुष्कर्मों की
-कालिख 
बुरी सोच की
-कीलें
जो गढ़ी हुई हैं
मन मस्तिष्क पर 
हमारे 

घोंट देते हैं 
-गला
उन आवाजों का
जो आती हैं
-अंतर्मन से

पर हम हैं समाज के 
सम्मानित नागरिक
क्यूँकी नहीं हैं हम
-पागल

वह नहीं जानता ये सब
फिर भी वह समाज को
करता है
-दूषित

क्यूँकी वो नंगा है
और हम हैं
समाज के सम्मानित
-सफेदपोश नागरिक 


......उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'
२९ जून २०१२रात्रि ०९ बजकर ०३ मिनट
© : उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब' , सर्वाधिकार सुरक्षित.




Monday 4 June 2012

क्यों ?


आबनूसी जिस्म की
महक पर
मदहोश 
होने वालो,

उसे कभी 
संगमरमरी 
बताने वालो,

होंठों को गुलाबी
पंखुडियां 
बताने वालो,

उसके आँचल 
को संसार 
बताने वालो,

उस वक़्त 
तुम्हारा 
श्रृंगार रस
से भरा 
प्रेम का तालाब 
कहाँ सूख
जाता है?

जब 
उसी जिस्म की 
मिट्टी
में 
यातनाओं के
हल चलाये जाते हैं
 तुम्हारे द्वारा!!

और तुम 
नमक रूपी 
गालियों 
का बीज लेकर 
तत्पर रहते हो
बोने के लिए 
उसी आबनूसी 
बदन के खेत में......उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'
०४ जून २०१२, रात्रि ११ बजकर ३८ मिनट
© : उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब' , सर्वाधिकार सुरक्षित.

Sunday 3 June 2012

युवा


सड़क के किनारे
पुराने से मकान
की तीसरी मंजिल 
पर बने हाल 
की दूसरी 
टेबल को
घेर कर जुटे हुए 
कुछ युवा
स्नूकर के
प्लस, माईनस
के गणित 
में उलझे हुए
फेरारी की तेज़ी  
और
अवतार के एनीमेशन
के जादू में 
फंसे हुए
रुपये की
गिरावट 
डालर की मजबूती 
के चर्चों के बीच
गंभीर
पेशानों पर लकीरें 
बनाते हुए

पर दूसरे ही पल
युवतियों की बातें 
ट्रिपल एक्स डीवीडी 
और सिगरेट 
के कशों 
से निकले हुए 
धुएं 
के गुब्बारों 
के साथ 
मिले जुले 
ठहाकों के स्वरों 
को जोड़ते हुए,

खिलंदड़ा 
स्वभाव 
लड़कपन 
को साथ लेकर
युवा जोश पर 
हावी
 होता
 चला
 गया
 है....उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब
(०३ जून २०१२ रात्रि ११ बजकर ३१ मिनट)