न जा तू खुद से दूर
कि कुछ कर गुजरना है
कर ले शिकवे-गिले दूर
कि कुछ कर गुजरना है
तू कोशिश तो कर, मान के चल
फिर तो ज़माने को सुधरना है
साथ चल कि
भीड़ को शक्ति में बदलना है
राख ही सही तू जान फूंक
कि युवा खून को उबलना है
अब उठ हो खड़ा
कि तुझे, तेरी उबासी को जोश में बदलना है
लड़कपन को भूल कि
तुझे ज़माने की चाल को बदलना है
भूल जा के तू कौन क्या कर सकता
कि तुझे इसी सोच को बदलना है
सीना फैला कि
देश को तेरे कांधों पे ही सम्हलना है
हार न मान
कि जीत को तेरे क़दमों में सिमटना है
हाथ बढ़ा
कि तकरार कि इस लकीर को मिटना है
तू बढ़ा हौंसला अपना
कि उनके इरादों को तमाँचों में पिटना है....उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'....
कि कुछ कर गुजरना है
कर ले शिकवे-गिले दूर
कि कुछ कर गुजरना है
तू कोशिश तो कर, मान के चल
फिर तो ज़माने को सुधरना है
साथ चल कि
भीड़ को शक्ति में बदलना है
राख ही सही तू जान फूंक
कि युवा खून को उबलना है
अब उठ हो खड़ा
कि तुझे, तेरी उबासी को जोश में बदलना है
लड़कपन को भूल कि
तुझे ज़माने की चाल को बदलना है
भूल जा के तू कौन क्या कर सकता
कि तुझे इसी सोच को बदलना है
सीना फैला कि
देश को तेरे कांधों पे ही सम्हलना है
हार न मान
कि जीत को तेरे क़दमों में सिमटना है
हाथ बढ़ा
कि तकरार कि इस लकीर को मिटना है
तू बढ़ा हौंसला अपना
कि उनके इरादों को तमाँचों में पिटना है....उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'....
भीड़ को शक्ति में बदलना है
ReplyDeleteराख ही सही तू जान फूंक कि युवा खून को उबलना है
बेहद खूबसूरत रचना।
शुभकामनाओँ के साथ
www.mranazad.blogspot.com
तुमार धन्यवाद च बल राणा जी
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