वह पागल है,
भटकता रहता है
सड़कों पर
गलियों में
फिरता रहता है
-वह नंगा
नहीं मालूम उसे
समाज क्या है?
दुनियादारी किसे कहते हैं?
नहीं जानता
निजता क्या है
वस्त्र क्या होता है?
तन किस लिए ढका जाता है?
जानता है तो बस
-भूख
पहचानता है तो बस
-रोटी
दुत्कारती है दुनिया
डरता है वह
अपने उपर फेंके जाने वाले
-पानी से
क्यूँकी वह पागल है
पर क्या फर्क है
उसमें और हममें
हम भी तो हैं
-नंगे
क्या हमने नहीं उतार फेंके
-वस्त्र
अपनी मर्यादाओं के
अपने संस्कारों के
अंतर्मन से आती हुई
चीख-पुकारों को
दफना देते हैं उन
-आवाजों को
तो क्या हम नहीं हैं?
हत्यारे,अपनी
-रूह के
जो कचोटती हैं
धिक्कारती हैं
-हमें
हमारे पापी होने पर
कहती हैं
मिटाने को
पुती हुई है जो
दिल की दीवारों पर
दुष्कर्मों की
-कालिख
बुरी सोच की
-कीलें
जो गढ़ी हुई हैं
मन मस्तिष्क पर
हमारे
घोंट देते हैं
-गला
उन आवाजों का
जो आती हैं
-अंतर्मन से
पर हम हैं समाज के
सम्मानित नागरिक
क्यूँकी नहीं हैं हम
-पागल
वह नहीं जानता ये सब
फिर भी वह समाज को
करता है
-दूषित
क्यूँकी वो नंगा है
और हम हैं
समाज के सम्मानित
-सफेदपोश नागरिक
......उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'
......उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'
२९ जून २०१२, रात्रि ०९ बजकर ०३ मिनट
© : उमेश
चन्द्र पन्त 'अज़ीब' , सर्वाधिकार
सुरक्षित.
hey Ajeeb I love u man....kahan se man.... plzzz make it more frequent.... chahe puri ratri jagran karna pade..... god bless u man...muaaaaaaaaaaaahhhh!!!!
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