यही कुछ साल भर पहले कविताओं की शुरुआत हुई...अनजाने ही कुछ पंक्तियाँ लिखीं तो लगा के मैं भी लिख सकता हूँ...बस यूँ ही एक अनजाने सफ़र की शुरुआत हो गई, उम्मीद है यह सफ़र यूँ ही अनवरत चलता रहेगा ...............क्योंकि..कुछ सफरों को मंजिलों की तलाश नहीं होती वे सिर्फ सफ़र हुआ करते हैं----आपका "अज़ीब"(२१ नवम्बर २०११.)
बहुत ख़ूबसूरत, बधाई.
ReplyDeleteपन्त जी, 'हमप्याला' तो ठीक है 'उधारी'. . . सोचना पड़ेगा. --सुन्दर ख़याल .
ReplyDeleteplease remove the word verification, thanks
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