Monday 9 January 2012

पहाड़ अंतिम समय मैं छु


भाभरकी भाबरियोव में नि भबरीणो
घर आओ
वां को छु अपण?
जब के नि रोल, काँ जला
कि कौला? कै मुख दिखाला?
फिर अपण जस मुख ल्ही बेर आला
आई ले 'टैम' छु
आओ, अपन जड़-जमीन पछियाणो
याद करो ऊ गाड़-भीड़
जो तुमार पितरनैल कमाईं
ऊ घर-बार
जो अफुं है बेर ले बाहिक समाईं

अरे भायो लाली
तुम कुंछा-पहाड़ में के नहातन आब
जब तुमे न्हेता
बाहिक के चें

तुम कुंछा-नेता लोग नैल पहाड़ चुसी हालो
मैं कूं-तुमुल त पहाड़ छोड़ी हालो

आओ यारो यस नि करो
हमर पहाड़ बर्बाद है गो
के करो यारो
जब जड़ सुखी जाल
बोट हरी नि रै सकन
अपण गौं-घर छोड़ी बेर
कैक भल नि है सकन
पहाड़ अंतिम समय मैं छु
फिर जन कया---
हमुल मुख ले नि देख सक................उमेश चन्द्र पन्त "अज़ीब"