Wednesday 13 May 2015

मैं.......

ख़ुदा दूर है, मैं भी खुद के पास नहीं हूँ।
बस उदासीन हूँ, पर उदास नहीं हूँ।
मुझे दुनिया से क्या छुपाना,मैं कोई राज़ नहीं हूँ।
गुनगुना लो गज़ल हूँ, फ़कत अल्फ़ाज़ नहीं हूँ।
वक़्त नासाज़ है तो क्या।
मुझे इक दौर समझना, सिर्फ कल और आज नहीं हूँ।
रुका हुआ हूँ सफ़र में चाहत-ए-मंज़िल की।
हौसला हूँ, सिर्फ परवाज़ नहीं हूँ।
बग़ावत करना मेरी सोच नहीं है।
जंग है ख़ुद से ही मेरी, पर जंगबाज़ नहीं हूँ।
~उमेश "अज़ीब"
30/04/15

मेरु मुलुक-मेरु गौं


याद आंदी च्
पुंगड्युं मा ढलकी काकड़ी क़ी
ग्वाला जयां नौनी बछड़ि की
बकरी का चिनखि की
घोलम बैठीं घुरानी घुघुती की
याद आंदी च्
दूध-भात अर घ्यू-रुट्टी की
याद आंदी च्
नौल-धार का मीठा पाणि की
थिचौड़ी-कफलि-फाणु-गौताणी की
याद औंदी च्
आरु-चुलु-खुमानी की
नौना-नौनीक खेल मा बिमानि की
याद औंदी च्
भौत कुछक जो पिछने रै ग्याई
कुछ छुट्टी गै, कुछ हमन छोङ दयाई
मि निर्भागी त परदेसी है ग्युं
पर मैँ औलु म्यारु गौं
मैं औलू
त्वे भेट्ण
एक दिन औलू
मि त न्हे जौलु एक दिन इखम बटिन
पर म्यारु गौं
तू जुगराजि रै सदा।
~उमेश "अज़ीब"
©:ucp,15
05/05/15 2.32 अपराह्न

ज़रूरी है कि.. जनगीत गाए जाएं....!!

हाँ हम मुस्कुराएंगे,
संघर्षों के दौर में,
क्यूँकि ज़रूरी है,
मुस्कुराना।

हाँ हम गुनगुनाएंगे,
संघर्षों के दौर में,
क्यूँकि ज़रूरी है,
गुनगुनाना।

हाँ साथ निभाएंगे,
संघर्षों के दौर में,
क्यूँकि ज़रूरी है,
साथ निभाना।

हाँ क्योंकि ज़रूरी है!
लड़ना अन्याय के ख़िलाफ़...
जंग जरुरी है...
ज़रूरी है कि..
जनगीत गाए जाएं....!!

आज डफली है,
कल तूती होगी,
परसों नक्कारे-नगाड़े होंगे,
और होंगे उनके साथ...जनगीत।
जो गाए जाएंगे...न्याय की खातिर।

कुछ न भी हुआ तो भी
आवाज़ होगी....
हर पल बुलंद होती हुई...और भी ज्यादा
क्योंकि ज़रूरी है
जनगीतों का गाया जाना

क्योंकि ज़रूरी है.....
......न्याय का मिलना....
हक़ का मिलना...बराबरी के लिए।

~उमेश "अज़ीब"
©:UCP
13/05/15
10:10 PM