Wednesday 13 May 2015

मेरु मुलुक-मेरु गौं


याद आंदी च्
पुंगड्युं मा ढलकी काकड़ी क़ी
ग्वाला जयां नौनी बछड़ि की
बकरी का चिनखि की
घोलम बैठीं घुरानी घुघुती की
याद आंदी च्
दूध-भात अर घ्यू-रुट्टी की
याद आंदी च्
नौल-धार का मीठा पाणि की
थिचौड़ी-कफलि-फाणु-गौताणी की
याद औंदी च्
आरु-चुलु-खुमानी की
नौना-नौनीक खेल मा बिमानि की
याद औंदी च्
भौत कुछक जो पिछने रै ग्याई
कुछ छुट्टी गै, कुछ हमन छोङ दयाई
मि निर्भागी त परदेसी है ग्युं
पर मैँ औलु म्यारु गौं
मैं औलू
त्वे भेट्ण
एक दिन औलू
मि त न्हे जौलु एक दिन इखम बटिन
पर म्यारु गौं
तू जुगराजि रै सदा।
~उमेश "अज़ीब"
©:ucp,15
05/05/15 2.32 अपराह्न

No comments:

Post a Comment