Friday, 20 April 2012

साड़-ताड़


लागि रईं बैसागाक साड़-ताड़
पाकि गयीं सब्बे गाड़.

पिंगाल-पिंगाल ग्यूँका बाल
पिंगई पड़ी गै गैर में
ग्यूँ मुठ, नलो ले भरी पटांगणं
लागण पै गयीं ताड़.

ताड़नकी चूटा-चूट
और मुंगार्नक धूसा-धूस,
ग्यूँका दाण छटकनी इथ-उथ
चाड़ प्वाथ्नक लुछा-लूछ.

घाम लगी गो मिसिर-पाणि ल्यावो
बुतिकारनक करो पूछ.

मोहन दा थ्वाड़े बुति ले करो
खाल्ली पोई रईं तुमार मूंछ.

पवु लगे बेर लगुंछा ताड़
हो-बल्द आल
को कराल तुमार गाड़न खालि...

मेहनत करो सीखो भौल
तुमार नानतिन तब सुखी रौल.

....उमेश चन्द्र पन्त "अज़ीब"....

Thursday, 12 April 2012

कुछ कर गुजरना है


न जा तू खुद से दूर
कि कुछ कर गुजरना है
कर ले शिकवे-गिले दूर
कि कुछ कर गुजरना है
तू कोशिश तो कर, मान के चल
फिर तो ज़माने को सुधरना है
साथ चल कि
भीड़ को शक्ति में बदलना है
राख ही सही तू जान फूंक
कि युवा खून को उबलना है
अब उठ हो खड़ा
कि तुझे, तेरी उबासी को जोश में बदलना है
लड़कपन को भूल कि
तुझे ज़माने की चाल को बदलना है
भूल जा के तू कौन क्या कर सकता
कि तुझे इसी सोच को बदलना है
सीना फैला कि
देश को तेरे कांधों पे ही सम्हलना है
हार न मान
कि जीत को तेरे क़दमों में सिमटना है
हाथ बढ़ा
कि तकरार कि इस लकीर को मिटना है
तू बढ़ा हौंसला अपना
कि उनके इरादों को तमाँचों में पिटना है....उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'....