Tuesday, 29 November 2011

उनके जानिब


आज यूँ ही उन का जिक्र हो आया
बरसों पहले जिन यादों को में था, खो आया
ख़ुशी की चाह में,मैं था गया उनके जानिब
न मिली न सही,बस रो आया
ज़ज्बात समझे बादलों ने मेरे
बरसते रहे रात भर, मैं यादों को धो आया
सहरा में न था एक भी दरख़्त
छाँव न थी अपनी, में धूप में ही सो आया
अकेला ही चला मैं, राह-ए-ग़ुरबत की
न था हमदम, न ही कोई साया
दाम लगाया मेरी मुहब्बत का उन्होंने
मैं सीने में खुद के, काँटों का बाड़ खींच आया
सलामती की दुआ थी उनकी,इस दिल में
हो जाता क़त्ल-ए-आम, मैं बस जबड़े 'भींच'आया....उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'....

1 comment:

  1. आपकी सुन्दर रचना पढ़ी, सुन्दर भावाभिव्यक्ति , शुभकामनाएं.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने की अनुकम्पा करें.

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