Monday, 21 November 2011

..प्रियतम..

..प्रियतम..

मेरे ह्रदय में वास करने वाली
मेरी जीवन संगिनी
ओठ ....रस के प्याले हैं...तुम्हारे
मदमस्त हो जाता हूँ में
उठा लेता हूँ जब भी में "चसक" उन की नाम की
नित गोता लगता हूँ,मैं
तुम्हारे नेत्रों की "गहराइयो" में
और कभी डूब सा जाता हूँ
उन में, शायद फिर न कभी उबरने के लिए

प्राणप्रिये...मेरी हमसाया
कर देती हो..घना काला अंधेरा ...
भोर की किरणों को भी छुपा लेती हो आगोश में
अपने घने लम्बे गेसुओं को जब फैला लेती हो
झटकती हो, जब उनसे पानियों के छींटे
काली घटा के साथ मानो सावन सा, उमड़-घुमड़ कर आ जाता है
पके हुए सेबों के मानिंद हल्की लालिमा छा जाती है
गालो में तुम्हारे...जब प्रेम भरी नज़रों से में देखता हूँ, प्रियतम तुम्हे.
ललाट में लगी हुयी..बिंदी तुम्हारी
पूरणमासी के चाँद के तरह लगती है...चांदनी फैलाती हुयी प्रतीत होती है

अखिल विश्व को प्राप्त कर लेता हूँ मैं,
मुझे अंक में लेके मेरे..केशों पर हाथ फेरती हो तुम मेरी प्रियतम

संपूर्ण हो जाता हूँ मैं,
बाहुपाश में बाँध लेते हो तुम मुझे जब-जब भी
तमाम मुश्किलें दूर हो जाती हैं...मुखड़ा जब भी याद आता है तुम्हारा
प्रियतम..मेरे ह्रदय में वास करने वाली
मेरी जीवन संगिनी....उमेश चन्द्र पन्त "अजीब"....

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