Monday 4 June 2012

क्यों ?


आबनूसी जिस्म की
महक पर
मदहोश 
होने वालो,

उसे कभी 
संगमरमरी 
बताने वालो,

होंठों को गुलाबी
पंखुडियां 
बताने वालो,

उसके आँचल 
को संसार 
बताने वालो,

उस वक़्त 
तुम्हारा 
श्रृंगार रस
से भरा 
प्रेम का तालाब 
कहाँ सूख
जाता है?

जब 
उसी जिस्म की 
मिट्टी
में 
यातनाओं के
हल चलाये जाते हैं
 तुम्हारे द्वारा!!

और तुम 
नमक रूपी 
गालियों 
का बीज लेकर 
तत्पर रहते हो
बोने के लिए 
उसी आबनूसी 
बदन के खेत में......उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'
०४ जून २०१२, रात्रि ११ बजकर ३८ मिनट
© : उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब' , सर्वाधिकार सुरक्षित.

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