यही कुछ साल भर पहले कविताओं की शुरुआत हुई...अनजाने ही कुछ पंक्तियाँ लिखीं तो लगा के मैं भी लिख सकता हूँ...बस यूँ ही एक अनजाने सफ़र की शुरुआत हो गई, उम्मीद है यह सफ़र यूँ ही अनवरत चलता रहेगा ...............क्योंकि..कुछ सफरों को मंजिलों की तलाश नहीं होती वे सिर्फ सफ़र हुआ करते हैं----आपका "अज़ीब"(२१ नवम्बर २०११.)
Saturday 24 December 2011
आओ चलें:उमेश चन्द्र पन्त: मिलन : क्षणिकाएं
आओ चलें:उमेश चन्द्र पन्त: मिलन : क्षणिकाएं: 1- चांदनी न सही , अमावस की रात होगी मैं आऊंगा उसी जगह इस उम्मीद के साथ के तुम मिलोगी मुझे इंतज़ार करते हुए . 2- आओ मिलो कभी अमराई में प्...
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