Thursday, 29 December 2011

1आज पीने का मन है,2पंखुड़ी-पंखुड़ी, पात-पात.


1आज पीने का मन है
मुहब्बत से भी जियादा, और भी गम हैं जिंदगी में
आओ हमप्याला बनो.

2पंखुड़ी-पंखुड़ी, पात-पात
सरोबार हैं, 'शबनम' से
आओ पीते हैं
कुछ उधारी उन से भी सही.

Monday, 26 December 2011

जिंदगी..ख़ूबसूरत है....


जिंदगी..ख़ूबसूरत है,
बहुत खूबसूरत
तितली के पंखों सी,
कभी फूलों सी,
पूनम की रात सी,
खूबसूरत है ...तुम्हारी कही किसी बात सी.
जिंदगी..खूबसूरत है
निश्छल,निष्कपट,
शिशु की मुस्कान की तरह,
खूबसूरत है..जिंदगी
उस समीर की तरह
शाम को मंद-मंद बहते हुए जो..माहौल में गुलाबी ठंडक ला देती है
जिंदगी खूबसूरत है...उससे भी ज्यादा जितना के वो हो सकती है.

Saturday, 24 December 2011

आओ चलें:उमेश चन्द्र पन्त: मिलन : क्षणिकाएं

आओ चलें:उमेश चन्द्र पन्त: मिलन : क्षणिकाएं: 1- चांदनी न सही , अमावस की रात होगी मैं आऊंगा उसी जगह इस उम्मीद के साथ के तुम मिलोगी मुझे इंतज़ार करते हुए . 2- आओ मिलो कभी अमराई में प्...

मिलन : क्षणिकाएं


1-चांदनी न सहीअमावस की रात होगी
मैं आऊंगा उसी जगह
इस उम्मीद के साथ के तुम मिलोगी मुझे
इंतज़ार करते हुए.

2-आओ मिलो कभी
अमराई में
प्यार की बातें करेंगे
कहो तो नीम्बोरी ले आऊं तुम्हारे लिए
क्या आ सकोगी?


3-आ भी जा
चल चलें
सुना है घाटी के पार
एक सूरज उगता है
उम्मीद की रौशनी को साथ लिए हुए.


4-नदी पर चलें
पार करेंगे तो
पार पायेंगे,
डूब जायेंगे
तो मिल जायेंगे
फिर न बिछुड़ने के लिए.

Wednesday, 21 December 2011

तालीम


हम तालीम लेते हैं
हर तरह से
हर तरीके की तालीम
ताउम्र लेते रहते हैं
कुछ न कुछ
किसी न किसी तरह की तालीम
हर लम्हा, हर वक़्त
दरजा दर दरजा
कदम दर कदम
लेते हैं, तालीम
अलग-अलग काफ़िया
पढ़ते हैं
सीखते हैं
कुछ नया
हर दफा
कोई नया काफ़िया
पढ़ते हैं
रखते हैं अपना नज़रिया, उस पर
देते हैं अपनी राय
संजीदगी से उस पर
और कभी-कभी बेबाकी से भी
पाते हैं हम कई-कई सनद अपने तालीमों से
वजीफ़े भी दिलाती है, तालीम हमको
इन सब बातों के बीच
शायद हम भूल जाते हैं
तालीम लेना
मुहोब्बत की
इंसानियत की

और उससे ज्यादा हम भूल जाते हैं लेना 
इंसान होके भी इंसान होने की ""तालीम"

Tuesday, 13 December 2011

दिनचर्या


'रात्ती-बियाणी' उठकर
करती है वो 'गोठ-पात'
फिर 'गोर' को 'हतियाती' है,

उजाला नहीं हुआ रहता,
जब तक वो
दो 'डाल' 'पोश' खेत पंहुचा आती है.

'सास-सौरज्यु' को 'चाहा' बनाकर देती है फिर
दूध 'तताती' है 'मुनु' के लिए वो
'रोट-साग' का कलेवा बनाती है.

'सौरज्यु' की निगरानी में छोड़ जाती है 'मुनु' को
जब 'बण' को वो जाती है
जंगल बंद होने ही वाला है, कुछ दिन में 'ह्यून' का
जंगलात का ऑडर जो 'ठैरा'.

बटोर लेना चाहती है वह
अधिक से अधिक
'शिर' की घास और 'दाबे'..अधिक से अधिक 'पाल्यो'.

बटोर लेना चाहती है वो
जंगल बंद होने से पहले 'ह्यून' का
जंगलात का ऑडर जो 'ठैरा'.

'दोफरी' को आकर
'भात' पकाती है वो
'कापे' के साथ.

'इजा', 'बाबू' कब 'आल'?
'मुनु' के सवाल का जवाब ढूंढ़ते हुए
थोडा सा याद कर लेती है वो उनको
पोस्टिंग हैं सियाचिन में.

फिर 'सुतर' 'गिन्याती' है
'इजर' को जाती है
शाम को घास लेने के लिए.

'गाज्यो' का 'दुणपोई' हुआ है, आजकल बहुत
माघ का है 'कल्योड़'
अतिरिक्त मेहनत तो करनी ही पड़ेगी.

'लाई-पालंग' बनाना है रात के खाने में
'ह्वाक' भी सुलगाना है 'सौरज्यु' के लिए 
शाम को 'गोर' हतिया' कर.
          
हाथ खाली नहीं है उसका काम करने से
फिर भी हाथ खाली है उसका.

चूड़ियाँ पहनने बाजार जाना था
कैसे जाये? 'सोबुत' ही नहीं हो पाता है काम 'आकतिरी'
मनीऑर्डर भी तो नहीं पंहुचा है उनका अभी तक
'मुनु' का 'बालबाड़ी' में भी डालना है.

ऐसा ही कुछ सोचा करती है वो
जाती है जब बिस्तर पर
'चुली-भानि' कर चुकने के बाद
कुछ और कहाँ सोच पाती है वह 
सिवाय अगले दिन के कामों को सोचने को छोड़ कर....उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'


Tuesday, 29 November 2011

उनके जानिब


आज यूँ ही उन का जिक्र हो आया
बरसों पहले जिन यादों को में था, खो आया
ख़ुशी की चाह में,मैं था गया उनके जानिब
न मिली न सही,बस रो आया
ज़ज्बात समझे बादलों ने मेरे
बरसते रहे रात भर, मैं यादों को धो आया
सहरा में न था एक भी दरख़्त
छाँव न थी अपनी, में धूप में ही सो आया
अकेला ही चला मैं, राह-ए-ग़ुरबत की
न था हमदम, न ही कोई साया
दाम लगाया मेरी मुहब्बत का उन्होंने
मैं सीने में खुद के, काँटों का बाड़ खींच आया
सलामती की दुआ थी उनकी,इस दिल में
हो जाता क़त्ल-ए-आम, मैं बस जबड़े 'भींच'आया....उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'....

Friday, 25 November 2011

चेहरा


सम्हालो खुद को, इस से पहले के देर हो जाये 
लोग कहते है के ज़माने की 'तबीयत' बदल रही है|
तबीयत किस 'तासीर' की है, खुदा जाने?
हमें तो लगता है के 'नीयत' बदल रही है|
आइने में फ़कत झाँकने से कुछ हासिल न होगा
दिखना चाहिए के सचमुच, "सीरत" बदल रही है??....उमेश चन्द्र पन्त "अज़ीब"....