Thursday 18 June 2015

मुट्ठी भर आसमां

बहुत तसल्ली दे चुके तुझे ए दिल
अब,
हासिल-ए-ज़मा चाहिए

फ़कत इक चिंगारी से कुछ न होगा
अब,
दिल में धधकती शमां चाहिए

दो गज़ जमीं नहीं 
अब, 
मुट्ठी भर आसमां चाहिए.

~उमेश"अज़ीब" 

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