बहुत तसल्ली दे चुके तुझे ए दिल
अब,
हासिल-ए-ज़मा चाहिए
फ़कत इक चिंगारी से कुछ न होगा
अब,
दिल में धधकती शमां चाहिए
दो गज़ जमीं नहीं
अब,
मुट्ठी भर आसमां चाहिए.
~उमेश"अज़ीब"
अब,
हासिल-ए-ज़मा चाहिए
फ़कत इक चिंगारी से कुछ न होगा
अब,
दिल में धधकती शमां चाहिए
दो गज़ जमीं नहीं
अब,
मुट्ठी भर आसमां चाहिए.
~उमेश"अज़ीब"
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