Monday 21 November 2011

मेरा गाँव


सुबह देखा मैंने
सूरज का, पहली किरण से धरती को प्रणाम
"बांज" का जंगल फैला हुआ है...
सुबह की मद्दिम रौशनी में
घने काले बादल सा  प्रतीत होता है वह
दूर कहीं  छितिज़ मै.
"टिपोई" का कलरव कानो मै मकरंद सा घोलता जाता है
"सिटोले" का " बिरालु " को देख कर कातर-क्रंदन
दिखलाई पड़ता है मुझे
हंसी ठिठोली करती जाती कुछ नवयोवनाएँ
देख रहा हूँ में
जा रही हैं
"नौले" से पानी भर लाने को
घास के "मांगों" के तरफ जाती हुए स्त्रियाँ
"असोज" के महीने की "हाई-तवाई" मचाते  हुए
देख रहा हूँ में, सुबह-सुबह
सामान की ढुलाई को आते हुए घोड़े-खच्चर.
देख रहा हूँ मै "बिनैग" की धार में
लाखे-खस्सी, बकरियों को ले जा कर
चराने लगा है कोई बकरिया
"धुर" की " बांजाणी" में
कितना अप्रतिम, सुन्दर दृश्य है
प्रातः की इस  बेला  में,
कितना असीम सौंदर्य फैला है हर तरफ
गाँव है ये मेरा
मेरा अपना गाँव....उमेश चन्द्र पन्त "अजीब"....

2 comments:

  1. nice...................... dost badhai!!!!!!!!!!!!

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  2. Gr8! makes one nostalgic about the mountain villages of India:)

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