Monday 21 November 2011

मेरे हमसफ़र आ
तझे ले के चलूँ
इन फिज़ाओं मै कहीं....
इन हवाओ क साथ तुझे कहीं उड़ा के ले के चलूँ
मेरे हमसफ़र आ
तझे ले के चलूँ
हुस्न की वादियों मैं
चाहत के समंदर मैं
बहाता ले चलूँ
मेरे हमसफ़र आ
तझे दूर ले क चलूँ
तुझे एहसास दिलाऊं....
तुझे ये बताऊँ.....के तू मेरा है....
तू आया जब से..मेरे जिन्दगी मैं नया सवेरा है
मेरे हमसफ़र आ
तझे ले के चलूँ
पर्वतों के पार..
एक घाटी मैं
जो है वादे-वफ़ा से सरोबार
मेरे हमसफ़र आ
तझे ले के चलूँ....उमेश चन्द्र पन्त "अज़ीब"....

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