Tuesday 22 November 2011

रिसाला.....


रिसाला.....
चंद पन्नो की
कुछ कहानियों को अपने मैं समेटे हुए वह रिसाला...
मेज के ऊपर अधखुली....कुछ चित्रों को नुमायाँ करते हुए ....
वह रिसाला
काश कर पाती शामिल खुद मै , मेरी जिन्दगी के कुछ पन्ने भी
खुद तो पूरी हो जाती
वह रिसाला .....न मै पूरा हूँ जिन्दगी मैं.....
और अधूरी है खुद भी ......
वह रिसाला....उमेश चन्द्र पन्त "अज़ीब"....

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