Tuesday 22 November 2011

शून्य की खोज में.


वह चला जाता है शून्य की खोज में
बियाबान के बीच से पर्वतों के उस पार
वह चला जाता है
तमाम झंझावातों को झेलता हुआ वह चला जाता है
शून्य की खोज में
पीछे छोड़ते हुए हर ख़ास ओ आम
दुनिया के आडम्बरों ताक मै रख कर तमाम
वह चला जाता है
शून्य की खोज में
मत रोको, चले जाने दो उसे
यह सोचो के वह क्यों चला जाता है?
यह सोचो के उसे समाज का कोपभाजन क्यों बनना पड़ा
क्यों सहना पड़ा उसे ये सुबकुछ
के...
...वह चला जाता है
शून्य की खोज में
शायद इसलिए न के उसने प्रेम किया था
छीन लिए गए वे सारे,..
चंद सपने जो देखे थे उसने अपने लिए
अब तो लगता है के उसने सच मैं कोई पाप किया था
के विरक्ति हो गई उसे इस संसार से
के वह चला जाता है
शून्य की खोज में
अपने प्रेमी के विछोह में
उसे जुनून है अपने प्रेम को अमरता देने का
उसे आज भी गर्व है के उसने प्रेम किया था ...
उसने नवाजा था अपनी प्रेयसी को दुनिया की सबसे बड़ी नेमत से
उसे छ्योभ है दुनिया पर....कुफ्र आता है..उसे दुनिया वालो पर
उसे विश्वास है खुद पर के
एक दिन दुनिया उसके प्रेम पर गर्व करेगी
शायद इसलिए
वह चला जाता है
शून्य की खोज में....उमेश चन्द्र पन्त "अज़ीब"....

1 comment: