Monday 21 November 2011

आहुति


खुशियाँ.....पूछता है ये ह्रदय मेरा...हैं कहाँ?
खुशियाँ..मांगता है ह्रदय मेरा वापस मुझ से
उम्मीदें....हैं बची क्या कुछ?
पूछता है...मुझसे बड़ी उम्मीद से मेरा ह्रदय, मुझ से
राहें...गुम हो गईं कहाँ?..
मेरी मंजिलों की ..पूछता है, मुझसे मेरा ह्रदय..
रातें... क्यूँ हो गई हैं सदियों सी लम्बी
दिन...मीलों से लम्बे
क्यूँ हो गए, पूछता है मुझ से मेरा ह्रदय
हैरान हूँ में, सुन कर ह्रदय की बातों को
हैरान हूँ मै, के ह्रदय कैसे कर रहा है
इन प्रश्नों को मुझ से
क्यूँ नहीं समझता ह्रदय मेरा, मजबूरी मेरी
कैसे समझाऊँ उसे...के
ऐ ह्रदय .....................तुझे कुछ अनुभव न होगा अब.
तुझे मार डाला गया है..
तू अब निष्प्राण हो चुका है.....आहुति दे चुका है तू अपने प्राणों की
अपने प्राणप्रिय के लिए....उमेश चन्द्र पन्त "अज़ीब"....

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