Monday 21 November 2011

नदी


पहाड़ी नदी
बहती है मेरे गाँव मै
बलखाती सी वो पहाड़ी नदी
किसी नवयोवना सी इठलाती हुए
वो पहाड़ी नदी
कल-कल बहती, करती वो छल-छल
उत्सव-उन्माद के खुमार मै, लहरा के बहती थी वो पहाड़ी नदी
पुरानी ऊंचे पुल से देखा करता था मैं उस नदी का अल्हड़पन
और देखा करता था मै उसमें मछलियों का खेलना
बिताया था जिसे देख-देख के अपना बचपन


गम हो गया नदी का उल्लास
अब नहीं खिलता सावन मै उसका वह यौवन
रहती है मुरझाई से
वह पहाड़ी नदी
अब नहीं रहता उसका दामन हरा-भरा जो होता था मेरा गाँव
अपने दुखों को बाँट लेती है वो पुल के सात
सुना है मैंने पुल से के -
अब ड़ाल दी गई हैं बेड़ियाँ उस के पाँव में
छीन ली गई है उससे, उसकी आज़ादी
किसी “HYDRO POWER PROJECT” की भेंट चढ़ गई है
सुना है मैंने उस पुराने पुल से....उमेश चन्द्र पन्त "अज़ीब"....

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